देवभूमि की महिलाओं का पारंपरिक परिधान.. इसके बिना अधूरे हैं सारे पर्व और त्यौहार

परिधान ही तो देवभूमि की संस्कृति है। आज हम उत्तराखंड के एक ऐसे पारंपरिक परिधान के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जो संस्कृति को समेटे हुए है।

पिछौड़ा का महत्वः

पिछौड़ा उत्तराखंड की महिलाओं को वही महत्व देता है जो पंजाबी महिलाओं को चूड़ा, बंगाली महिलाओं को शाखा और पोला और लद्दाख की महिलाओं को पेराख देता है।

उत्तराखंड में पिछौड़ा एक विवाहित महिला के लिए उसके सुहाग की निशानी के तैर पर भी देखा जाता है। पिछौड़ा उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में विवाह का एक महत्वपूर्ण अंग है,

पिछौड़ को माना जाता है शुभ

जिस तरह यह माना जाता है कि किसी खास मौके पर काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए, उसी तरह कुमाऊं की महिलाएं हर मांगलिक अवसर या खास मौके पर पिछौड़ पहनती हैं।

शादीशुदा महिलाएं ही पहनती हैं पिछौड़

उत्तराखंड के कुमाऊ क्षेत्र की शादीशुदा महिलाएं ही पिछौड़ पहनती हैं। पहली बार हर लड़की अपनी शादी के दिन ही पिछौड़ पहनती है। फेरे होने से पहले लड़की के लहंगे के दुपट्टे की जगह पिछौड़ पहनाया जाता है।