देहरादून। उत्तराखंड में इन दिनों राज्य सरकार ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई बड़े फैसले लिए हैं, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अचानक इन फैसलों को लेकर सबको ‘कॉप-26’ की याद आने लगी. इन फैसलों का आखिर कॉप-26 से क्या है कनेक्शन ? उत्तराखंड में क्यों हो रही है कॉप-26 की चर्चाएं.. आइए इस आर्टिकल में इन सब सवालों के जवाब देंगे.
दरअसल, नवंबर 2020 में ग्लास्गो में जलवायु परिवर्तन को रोकने हेतु वैश्विक सम्मेलन का आयोजन हुआ था. इसमें संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने हिस्सा लिया था. इस सम्मेलन को ‘कॉप-26’ के नाम से जाना जाता है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी ने वर्ष 2070 तक भारत में शून्य कार्बन करने का लक्ष्य रखा है. इसके तहत कार्बन उत्सर्जन को रोकने हेतु परंपरागत ऊर्जा के बजाय स्वच्छ ऊर्जा को प्रयोग में लाया जाएगा.
इसी सम्मेलन में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन व अन्य बड़े देशों ने 2050 तक शून्य कार्बन का लक्ष्य रखा है. यानी इन देशों में 2050 तक कार्बन ऊर्जा को लगभग खत्म कर दिया जाएगा. इसके अगले वर्ष हुए ‘कॉप-26’ में सभी देशों ने सर्वसम्मति से वैश्विक जलवायु क्षतिपूर्ति कोष के गठन की संयुक्त घोषणा की थी. इसके तहत ऐसे देश जो कार्बन उत्सर्जन बहुत कम करते हैं, लेकिन उन्हें जलवायु परिवर्तन का नुकसान उठाना पड़ रहा है, ऐसे देशों को होने वाली क्षति की भरपायी करना था.
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सभी देशों में कड़े कदम उठाए जा रहे हैं. भारत में भी जीवांश्म ईंधन के प्रयोग को खत्म करने की जरूरत बतायी गई, लेकिन अभी चुनिंदा क्षेत्रों को छोड़ दें तो अधिकांश राज्यों में कोई प्रगति नहीं हो ही है. अब ऐसे में उत्तराखंड ने इस दिशा में कई बड़े कदम उठाए हैं. इनमें 15 वर्ष पुराने ईंधन संचालित वाहनों को बाहर करना सबसे बड़ा फैसला है. इसके अलावा बिजली के लिए भी सरकार सौर ऊर्जा को बढ़ावा देगी. इसके लिए सोलर वाटर हीटर योजना भी ला रही है, जिसमें उपभोक्ताओं को घरेलू व व्यावसायिक अलग-अलग श्रेणियों में 50 प्रतिशत तक छूट दी जाएगी. जाहिर है कि इन फैसलों के पीछे जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयास देखे जा सकते हैं.
उत्तराखंड के लिए क्यों खतरनाक है जलवायु परिवर्तन
उत्तराखंड हिमालयी राज्य होने के कारण यहां की जलवायु विशेष है. यहां बड़े ग्लेशियर हैं, जलवायु परिवर्तन से तापमान में वृध्दि होगी, जिससे ग्लेशियर पिघलने लगेंगे. ग्लेशियर पिघलने से सदानीराएं (बारहमासी नदियां) में जल का संकट खड़ा हो जाएगा.
यहां घने वन होने के कारण 5 नेशनल पार्क व 7 नेशनल वाइल्ड-लाइफ सेंचुरी हैं. यहां देश का सबसे दुर्लभ वन्य-जीव कस्तूरी मृग भी देखा जाता है. यह वन संपदा एवं वन्य-जीवों के लिए खतरा पैदा करेगा.
उत्तराखंड में जल संसाधनों संपन्न है, जलवायु परिवर्तन से यहां के जल स्रोत सूख सकते हैं और यहां जल संकट पैदा हो सकता है.
पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी सिंचाई की व्यवस्था करना मुश्किल है. यहां दशकों से पहले की निर्मित व्यवस्था को ही प्रयोग में लाय जाता है.
संभव है कि उत्तराखंडवासी इस फैसले से ज्यादा खुश न हों, लेकिन यह जिम्मेदारी भरा कदम है, क्योंकि उत्तराखंड हिमलायी राज्य भी है, इसलिए यहां जलवायु का संरक्षण बेहद आवश्यक है. अगर जलवायु प्रभावित होगी तो यह जैव-विविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से बेहद नुकसानभरा साबित हो सकता है.