भारत में कई मंदिर हैं,और हर मंदिर अपने आप में कई रहस्य समेटें हुए है,लाखों मंदिरों में से कई मंदिरों का रहस्य आज भी कोई नहीं सुलझा पाया है,लेकिन भक्त मंदिरों में पूरी आस्था के साथ भगवान के दर्शन के लिए आते है,कई रहस्यों से भरा एक ऐसा ही मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में है,माना जाता है की इस गुफा में दुनिया के खत्म होने का राज छिपा हुआ है,हालांकि अभी तक इसकी असलियत के बारे में कोई नही जानता।
इस मंदिर में छिपा है दुनिया खत्म होने का राज
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित इस गुफा का नाम पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर है। वही इस गुफा के बारे में हिंदू धर्म के पुराणों में भी जिक्र मिलता है। साथ ही कहा जाता है की गुफा के भीतर पूरी दुनिया के खत्म होने का रहस्य छिपा है।
क्या है मान्यता ?
भुवनेश्वर गुफा मंदिर के बारे में मान्यता है की गुफा के गर्भ में पूरी दुनिया के खत्म होने का रहस्य छिपा है,यही नहीं गुफा में एक मंदिर भी है. और इस मंदिर को भी रहस्यमयी माना गया है। मंदिर के अंदर जाने के लिए गुफा से ही जाना पड़ता है, जिसके लिए बेहद पतले रास्ते से गुजरना पड़ता है, जब गुफा के अंदर जाकर मंदिर की ओर बढ़ते है तो यहां चट्टानों की कलाकृति हाथी के जैसी दिखती है. इसके बाद नागों के राजा अधिशेष की कलाकृति भी इसके चट्टानों में दिखने को मिलती है। यही नहीं माना तो ये भी जाता है कि नागों के राजा अधिशेष ने ही दुनिया का भार अपने सिर पर संभाल रखा है.
पुराणों के अनुसार चार द्वार है मौजूद
पुराणों के अनुसार इस मंदिर में चार द्वार मौजूद हैं, इसमें से एक रणद्वार, दूसरा पापद्वार, तीसरा धर्मद्वार और चौथा मोक्षद्वार है. मान्यता है कि रावण की जब मृत्यु हुई थी, तब पापद्वार का दरवाजा बंद हो गया था. वहीं कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पहले द्वार यानि रणद्वार को भी बंद कर दिया गया था. स्कंदपुराण में लिखा गया है कि पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर में भगवान शिव का निवास है.और सभी देवी-देवता भगवान शिव की पूजा आर्चना के लिए आते है।
दूसरी कथा के अनुसार
दूसरी कथा के अनुसार सूर्य वंश के राजा ने इस मंदिर की खोज की थी, सूर्य वंश के राजा ऋतुपर्णा थे, जिनका अयोध्या पर त्रेता युग में शासन था. ऋतुपर्णा की नागों के राजा अधिशेष से यहीं पर मुलाकात हुई थी. मान्यता है कि राजा ऋतुपर्णा को इस गुफा के अंदर नागों के राजा अधिशेष लेकर गए थे. फिर उन्हें भगवान शिव तथा अन्य देवी-देवताओं के दर्शन हुए थे. इसके बाद द्वापर युग में पांडवों ने इस गुफा की खोज की थी. पांडव इस गुफा में भगवान शिव की पूजा करते थे.