देवभूमि मतलब जहां देवों का वास हो,देवों की धरती में भक्ति की मिठास हो,हिमालय की चोटी में बैठे देवों के दर्शन के लिए ऊंचे ऊंचे पहाड़ भी फीके लगते है,हम बात कर रहे उत्तराखंड की जहां चारों धाम है,यहां मां पर्वती का मायका है,मोक्ष का द्वार बद्रीनाथ भी यही है,
हमारे धर्म में शंख बजाना शुभ माना जाता है,लेकिन बद्रीनाथ में क्याें शंख नहीं बजाया जाता क्या आप जानते है.
देवभूमि की खूबसूरती को देखने और भगवन के दर्शन करने के लिए यहां देश दुनिया से लोग आते है,बद्रीनाथ धाम जिसे बेकुंड धाम भी बोला जाता है ,जो भगवान विष्णु जी को समर्पित है,और भगवन विष्णु जी को शंख की ध्वानि काफी प्रिय है,लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की उनके धाम यानी की बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता ।
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी तुलसी भवन में ध्यान लगा रही थी,उसी समय भगवान विष्णु जी ने शंखचूर्ण नामक राक्षस का वध किया था,चूंकि हिन्दू धर्म में जीत पर शंख बजाया जाता है, और मां लक्ष्मी जी ध्यान कर रही थी इसलिए भगवान विष्णु जी ने उनके ध्यान में विघन नहीं डालना चाहा जिसके कारण उन्होने शंख नहीं बजाया,कहा जाता है उसके बाद से ही बद्रीनाथ मे शंख नही बजाया जाता.
एक और कथा प्रचलित है कि हिमालय क्षेत्र में दानवों का बड़ा आतंक था. वो पूरे क्षेत्र में भयंकर उत्पात मचाते थे. उनकी वजह से ऋषि मुनि मंदिर में भगवान की पूजा तक नहीं कर पाते थे. यही नहीं, अपने आश्रमों में भी ऋषि मुनि संध्या ध्यान नहीं कर पाते थे. राक्षस ऋषि मुनियों को अपना भोजन तक बना लेते थे. ये सब देखकर ऋषि अगस्त्य ने माता भगवती के सामने मदद के लिए प्रार्थना की. इसके बाद माता भगवती कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल व कटार से सारे राक्षसों का विनाश करने लगीं.