देहरादून। भले ही उत्तराखंड में ठंड ने दस्तक दे दी हो, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं सियासी पारा बढ़ता नजर आ रहा है। राजनीतिक दलों में उठापटक का दौर मोल-भाव नफा-नुकसान चरम पर है। हर कोई दल एक दूसरे को मात देने के लिए सियासी हथकंडे अपना रहा है। कल उत्तराखंड के वरिष्ठ मंत्री हरक सिंह रावत और और रायपुर विधानसभा के विधायक उमेश शर्मा काऊ के दिल्ली दौरे को लेकर एक बार फिर उत्तराखंड की राजनीति में हलचल मचा दी।
राजनीतिक पंडित कल से अपने अपने हिसाब से आंकलन कर रहे हैं। कल इस बात को लेकर चर्चा होने लगी कि हरक सिंह रावत कहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष या चुनाव संचाल समिति के अध्यक्ष तो नहीं बनने जा रहे हैं। और रायपुर के विधायक उमेश शर्मा काऊ को कहीं मंत्री तो नहीं बनाया जा रहा है। इस तरह की चर्चाओं से कल से बाजार गर्म है। यह बताया गया कि हाईकमान ने दोनों को दिल्ली बुलाया है। इस बात में कितनी सच्चाई है, इसको लेकर भी चर्चा रही। सूत्रों से पता चला है कि हरक सिंह रावत ने खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने का समय मांगा था। हरक सिंह रावत राजनीति में सियासी नफा नुकसान और मोलभाव करने में माहिर हैं और यह मुलाकात पार्टी पर दबाव बनाने की उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। राजनीतिक जानकारों की माने तो हरक सिंह रावत अभी प्रदेश की राजनीति पर बारीकी से नजर लगाए हुए हैं वह कोई भी फैसला तत्काल नहीं लेते है। अभी दो महीने बाद उनका अगला कदम क्या होगा यह देखने लायक होगा। अभी वह भाजपा में दबाव की राजनीति कर रहे हैं। उनको लगता है कि भारतीय जनता पार्टी में वे मुख्यमंत्री तो कभी नहीं बन सकते। इसलिए वह 2022 का चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन अपनी बहू और पत्नी को वे राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। और अपने आप पौड़ी लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। या फिर कुछ दिन संगठन में काम करना चाहते हैं। सूत्रों की माने तो कांग्रेस की नजर भी इन बागी विधायकों पर लगी हुई है और कांग्रेस के कुछ नेता इनके संपर्क में हैं। ऐसा कांग्रेस के कुछ नेता भी दावा कर रहे हैं कि इनमें से कुछ विधायक तो कांग्रेस के संपर्क में भी हैं। अभी कुछ समय और देखने लायक होगा जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे राजनीतिक दलों के नेताओं में दल बदलने का सिलसिला दिखाई देगा, और राजनीतिक तपिश भी ठंड के साथ बढ़ेगी ।