रुद्रप्रयाग, 9 जून 2025
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के जखोली विकासखंड अंतर्गत मयाली आश्रम में मंगलवार रात गुलदार ने एक और महिला को मौत के घाट उतार दिया। यह घटना क्षेत्र में लगातार हो रहे गुलदार हमलों की कड़ी में एक और भयावह अध्याय जोड़ती है। मृतका की पहचान 65 वर्षीय रामेश्वरी देवी, पत्नी कैलाश सिंह बुटोला के रूप में हुई है, जिन पर रात करीब 8:30 बजे आंगन में गुलदार ने हमला कर दिया।

लगातार हमलों से सहमे ग्रामीण: दो महीने में छह घटनाएं
जखोली क्षेत्र में पिछले दो महीनों में छह से अधिक गुलदार हमले हो चुके हैं, जिनमें अब तक तीन महिलाओं की मौत हो चुकी है और दो स्कूली बच्चे घायल हुए हैं।
घटनाओं का क्रम:
1.4 जून: रामेश्वरी देवी की गुलदार हमले में मौत
2.30 मई: रूपा देवी पर गुलदार हमले में मौत
3.पूर्व में: मखेत के पास दो स्कूली बच्चों पर हमला (एक महरगांव, एक दुमकी गांव से)
4.खरियाल गांव: एक महिला पर हमला
5.देवल गांव: एक महिला की मौत
6.लम्बवाड़: एक महिला पर हमला
यह सब घटनाएं एक ही क्षेत्र में लगभग 2 किलोमीटर के दायरे में हुई हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि आदमखोर गुलदार लगातार आबादी वाले क्षेत्रों में सक्रिय है।
गुस्से में ग्रामीण: वन विभाग की निष्क्रियता पर उठे सवाल
हर हमले के बाद ग्रामीणों द्वारा गुलदार को आदमखोर घोषित कर मारने की मांग की गई, लेकिन वन विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब लोगों का गुस्सा खुलकर सामने आने लगा है। मयाली, मखेत, देवल, खरियाल और लाम्बवाड़ जैसे गांवों में लोग खुलकर वन विभाग के विरोध में सड़कों पर उतरने की चेतावनी दे रहे हैं।
ग्रामीणों की माँग:
1.गुलदार को तत्काल आदमखोर घोषित किया जाए
2.क्षेत्र में गश्त और पिंजरे की व्यवस्था की जाए
3.पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा दिया जाए
4.वन विभाग और प्रशासन स्थायी समाधान की ओर बढ़े
क्या कहता है वन्यजीव कानून?
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 11 के तहत, किसी जानवर को आदमखोर घोषित कर उसे मारने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन इसके लिए सरकार और विभागीय स्तर पर लिखित प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। देरी के चलते कई बार ऐसे हमले और भी बढ़ जाते हैं।
कब जागेगा प्रशासन?
जखोली जैसे संवेदनशील क्षेत्र में लगातार हो रही घटनाएं सिर्फ वन्यजीव संघर्ष नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की विफलता की कहानी भी हैं। यदि अब भी उचित कार्रवाई नहीं हुई तो यह संघर्ष न केवल जानलेवा, बल्कि जनाक्रोश में भी तब्दील हो सकता है।
यह अब सिर्फ जंगल बनाम गांव की लड़ाई नहीं, बल्कि जीवन और भय के बीच का संघर्ष बन चुका है।