उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में एक विशेष न्यायालय ने चरस तस्करी से जुड़े एक मामले में पुलिस की जांच पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए तीनों आरोपितों को दोषमुक्त करार दिया। अदालत ने पाया कि पुलिस द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य न केवल अपर्याप्त थे, बल्कि पूरे मामले की कहानी संदेहास्पद प्रतीत हो रही थी।

स्वतंत्र गवाह और तकनीकी साक्ष्य का अभाव
अदालत के समक्ष प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार, घटना स्थल पर कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं था, और घटनाक्रम की न तो वीडियोग्राफी की गई और न ही कोई निष्पक्ष पुष्टि उपलब्ध कराई गई। पुलिस केवल अपने बयानों और दस्तावेजों के आधार पर आरोप सिद्ध करने का प्रयास कर रही थी।
केवल पुलिस के बयान पर नहीं ठहराया जा सकता दोषी
विशेष अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को केवल पुलिस के मौखिक या लिखित बयानों के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि आरोपों को सिद्ध करने के लिए मजबूत, स्वतंत्र और तकनीकी साक्ष्य प्रस्तुत न किए जाएं।
आरोपितों को दी गई राहत, पुलिस कार्रवाई पर उठे गंभीर सवाल
तीनों आरोपितों को अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया, जिसके बाद पुलिस की भूमिका और जांच प्रक्रिया पर समाज में गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। यह मामला एक बार फिर पुलिस की जांच पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को उजागर करता है।
इस निर्णय ने न केवल बेकसूर लोगों को न्याय दिलाया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि न्यायपालिका केवल आरोप नहीं, साक्ष्य देखती है, और कानून की नजर में हर व्यक्ति तब तक निर्दोष है जब तक उसका दोष साबित न हो जाए।