देहरादून। सम्पूर्ण भारत प्रत्येक वर्ष दीपावली पर्व को बेहद हर्षाेल्लास से मनाता है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए बताया गया कि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक यानी धनतेरस से भाई दूज तक का यह मंगलमय सफर स्वयं में पांच पर्वों को समाए हुए है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात ‘अंधकार से प्रकाश की ओर’ ले चलने की उपनिषदिक प्रार्थना को यह पर्व बुलंद करता है। पर्व का एक अर्थ ‘सीढ़ी’ भी होता है। मानव जीवन सही मायनों में उत्कर्ष की सीढ़ी कैसे चढ़े, यही संदेश देते हैं ये पर्व!
हम सभी जानते हैं कि अमावस्या की अँधेरी रात को हर्षाेल्लास से भरा दिवाली पर्व मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन प्रभु राम आसुरी शक्तियों का वध करके अयोध्या लौटे थे। सांकेतिक अर्थ यही है कि जीवन की दुःख भरी काली रात्रि में जब ईश्वर का पदार्पण हो जाता है, तो हर अशुभ घड़ी शुभ में परिवर्तित हो जाती है। दीपावली का यह दिन अन्य अनेक शुभ कारणों को भी लिए हुए है। इस दिन न केवल प्रभु राम रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे, अपितु इसी दिन तेरह साल बाद पाण्डवों का हस्तिनापुर लौटना हुआ था। भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर इसी दिन हिरण्यकशिपु का वध किया था। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था। जैन धर्म में इस दिन को ही महावीर जी के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन ही सिक्खों के छठे गुरु श्री हरगोबिन्द सिंह जी 52 अन्य राजाओं सहित कारागार से मुक्त हुए थे। इस कारण से सिक्ख भाई-बहन इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में धूमधाम से मानते हैं।
स्वामी रामतीर्थ जी का जन्म व महाप्रयाण दोनों इसी दिन हुए थे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी का निर्वाण भी इसी दिन हुआ था। कठोपनिषद में नचिकेता प्रसंग के अनुसार बालक नचिकेता ने यमाचार्य के समक्ष आत्मज्ञान की जिज्ञासा रखी। यमाचार्य ने उसे ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उसकी इस जिज्ञासा का शमन किया। नचिकेता सत्गुरु रूपी यमाचार्य से आत्मज्ञान प्राप्त कर यमलोक से भूलोक लौटा। उसके लौटने की खुशी में सभी नगरवासियों ने पूरे नगर में दीप जलाए। यह पावन घटना भी दीपावली के दिन ही घटी थी।