नई दिल्ली। पाकिस्तान और चीन की दोहरी चुनौती के बीच भारत अब अपने एयर डिफेंस को अभेद्य बनाने की दिशा में बड़ी छलांग लगा चुका है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइलों को हवा में ही खत्म करने की भारत की क्षमता ने साफ कर दिया कि देश का डिफेंस सिस्टम अब पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली हो चुका है। लेकिन अब भारत एक और बड़ा कदम उठाने जा रहा है – ‘प्रोजेक्ट कुशा’, जो देश को रूस के S-500 और अमेरिका के THAAD जैसे आधुनिक सिस्टम से भी आगे ले जाएगा।
प्रोजेक्ट कुशा: आत्मनिर्भर भारत का ‘गेम-चेंजर‘
8 जून 2025 को DRDO प्रमुख द्वारा इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की घोषणा की गई, जिसे भारत के लिए गेम-चेंजर बताया गया। प्रोजेक्ट कुशा एक विस्तारित रेंज एयर डिफेंस सिस्टम है, जिसे PGLRSAM के रूप में भी जाना जाता है।
यह सिस्टम 80-90% इंटरसेप्शन सफलता दर के साथ स्टील्थ जेट्स, ड्रोन, एंटी-शिप मिसाइल और एयरक्राफ्ट को मार गिराने की क्षमता रखता है।
यह आकाश और बराक-8 जैसे मौजूदा सिस्टम के साथ जुड़कर एक मजबूत ‘इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस नेटवर्क’ बनाएगा।

तीन स्तर का इंटरसेप्टर सिस्टम: हर खतरे पर सटीक वार
प्रोजेक्ट कुशा की ताकत इसके तीन-स्तरीय इंटरसेप्टर मिसाइल सिस्टम में है:
M1 इंटरसेप्टर (150 किमी): स्टील्थ ड्रोन, फाइटर जेट और क्रूज मिसाइल जैसे खतरे के लिए।
M2 इंटरसेप्टर (250 किमी): AEW&CS और एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल जैसे हाई-प्रायोरिटी टारगेट के लिए।
M3 इंटरसेप्टर (350-400 किमी): SRBM, IRBM और बड़े विमानों के लिए डिजाइन किया गया।
यह सभी मिसाइलें हाई-स्पीड हिट-टू-किल तकनीक से लैस होंगी, जो विस्फोट नहीं बल्कि टक्कर से दुश्मन के हथियार को नष्ट करेंगी, ठीक वैसा ही जैसा अमेरिका के THAAD और SM-3 सिस्टम में होता है|सिस्टम की मारक क्षमता एक मिसाइल में 85% और दो मिसाइलों को पांच सेकंड के अंतराल पर लॉन्च करने पर 98.5% तक पहुंच जाती है।
500+ किमी रेंज वाला एडवांस रडार सिस्टम
प्रोजेक्ट कुशा का कमांड और कंट्रोल सिस्टम एक S-बैंड लॉन्ग रेंज बैटल मैनेजमेंट रडार (LRBMR) से जुड़ा होगा, जो 500-600 किमी की रेंज तक दुश्मन के टारगेट को डिटेक्ट कर सकेगा।यह सिस्टम IACCS (इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम) के साथ जुड़कर आकाश, S-400 और MRSAM जैसे अन्य सिस्टम से रियल टाइम डेटा शेयर करेगा।

भारतीय नौसेना को मिलेगा समुद्री कवच
भारतीय नौसेना के लिए भी एक नया 6×6 मीटर रडार विकसित किया जा रहा है, जो मौजूदा युद्धपोतों पर लगे रडार से चार गुना बड़ा होगा। यह रडार 1,000 किलोमीटर तक की दूरी पर आने वाली समुद्री और एंटी-शिप मिसाइलों का पता लगा सकेगा।
प्रोजेक्ट कुशा के 2028-2029 तक पूरी तरह से तैयार हो जाने की उम्मीद है। यह न केवल भारत की हवाई सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों को भी नई ऊंचाई देगा।