‘उठा जागा है उत्तराखंडियों सौ उठानों बगत ऐगे
उत्तराखंड का मान -सम्मान बचाण बगत ऐगे”
गढ़रत्न नरेंद्र सिंह जी के यह गीत उत्तराखंड आन्दोलन मे एक अलग क्रांति लेकर आए थे । ये वहीं गीत है जिन्होंने आन्दोलन के वक्त उत्तराखंडियों को जगाने का काम किया था। राज्य आन्दोलन की लड़ाई मे बच्चे,बूढ़े , नौजवान ,माताएं- बहने सब सडकों पर उतर आयें थे। उसी के परिणाम स्वरूप हमें एक पृथक राज्य ‘उत्तराखंड ‘ प्राप्त हुआ ।
राज्य गठन के इतने वर्ष बाद आज एक बार फिर से उत्तराखंडी सडकों पर नजर आ रहा है । फिर से नेगी जी के गीत चिंगारी की लौ जलाते दिख रहे है। सारे उत्तराखंडवासी एक बार फिर से अपने हक की लड़ाई लड़ने को मजबूर हो रहे है। सभी की एक ही मांग प्रबल हो रही है और वह मांग है भू कानून की ।
भू कानून क्या है ?
भू कानून की मांग से पहले यह समझना जरूरी है की आखिर भू कानून है क्या ? और राज्य गठन के इतने समय बाद क्यों इसकी मांग इतनी तेजी से बढ़ रही है। बता दें की साल 2000 में जब उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर अलग संस्कृति, बोली-भाषा होने के दम पर एक संपूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था। उस समय कई आंदोलनकारियों समेत प्रदेश के बुद्धिजीवियों को डर था कि प्रदेश की जमीन और संस्कृति भू माफियाओं के हाथ में न चली जाए, इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई ।
बता दें की साल 2000 में राज्य गठन के बाद यहां ‘विकास’ के नाम पर भू-कानून में कई बदलाव किए गए हैं। सशक्त भू-कानून न होने की वजह से राज्य में बाहरी लोगों और कॉरपोरेट घराने में बड़े पैमाने में जमीन की खरीद-फरोख्त की है।इस वजह से यहां के मूल निवासी और भूमिधर अब भूमिहीन हो रहे हैं। आम लोगों का कहना है कि भू कानून को लेकर के प्रदेश में एक बार चर्चा होनी चाहिए. आम जनता की मुश्किलों का समाधान करते हुए एक ठोस भू-कानून बनना चाहिए. प्रदेश में ऐसा भी ना हो कि सारी जमीन बिक जाए और यहां के लोग बेघर हो जाएं. एक उचित मजबूत कानून बनाने की आवश्यकता है. सभी से चर्चा के बाद यह कानून बनाया जाना चाहिए 2003 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा संशोधन करने के बाद ही राज्य का भू-कानून अस्तित्व में आया। 2008 में भी हुए संशोधन बाद भूमि खरीद-फरोख्त को लेकर सख्त बाध्यताएं लागू हुईं। इसके बाद 2018 में भाजपा सरकार ने पर्वतीय क्षेत्र में उद्योगों के नाम जमीन खरीदने की सभी बाध्यताओं को समाप्त कर दिया । जिसके बाद से व्यापार के नाम पर बाहरी व्यक्तियो की यहाँ आवाजाही ज्यादा होने लगी है । पहाड़ों मे बड़े बड़े रिसॉर्ट बनने से गाँव के लोगों को शोर शराबे का सामना करना पड़ रहा है । साथ ही पहाड़ों मे धीरे धीरे एसी घटनाएं घटना शुरू हो चुकी है जिससे की हर पहाड़ी भयभीत है ।
भू कानून की मांग ले रहा आन्दोलन का रूप
सोशल मीडिया से शुरू हुई सशक्त भू कानून की मांग अब धरातल पर अपना रौद्र रूप दिखाने लगी है । हाल ही मे 24 दिसंबर 2023 को उत्तराखंड के विभिन्न संस्था और उत्तराखंडियों द्वारा देहरादून के परेड ग्राउन्ड के भू कानून हेतु महारैली का आयोजन किया । जिसमे की लाखों की भीड़ एक ही स्वर मे भू कानून की मांग कर रही थी । भू कानून संघर्ष समिति का कहना है की अगर राज्य मे जल्द ही हिमाचल की तर्ज पर भू कानून को लागू नहीं किया गया तो जल्द ही यह आन्दोलन और बड़े पैमाने पर किया जाएगा ।
भू कानून की जरूरत क्यों हैं
आम लोगों का कहना है कि भू कानून को लेकर के प्रदेश में एक बार चर्चा होनी चाहिए. आम जनता की मुश्किलों का समाधान करते हुए एक ठोस भू-कानून बनना चाहिए. प्रदेश में ऐसा भी ना हो कि सारी जमीन बिक जाए और यहां के लोग बेघर हो जाएं. एक उचित मजबूत कानून बनाने की आवश्यकता है. सभी से चर्चा के बाद यह कानून बनाया जाना चाहिए।
विपक्ष भी उठा रहा भू कानून की मांग
विपक्ष भी सरकार पर हमला बोलने लगा है. कांग्रेस का कहना है कि भू-कानून कोई विवाद का विषय नहीं है. कांग्रेस की सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने फूलप्रूफ भू-कानून बनाया था. लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने कॉर्पोरेट के नाम पर, इन्वेस्टमेंट के नाम पर, निवेश के नाम पर, भू कानून तहस-नहस कर दिया. राज्य में जो मांग चल रही है पहले लोगों को भू-कानून के बारे में पढ़ना चाहिए। एक पूरे राज्य भर के लिए भू-कानून होना चाहिए जिससे भूमाफिया दूर रहें।
क्या नियम बदल लेने से बदलवाव आएगा
धीरे धीरे उतराखंड बाहरी व्यक्तियों की गिरफ्त या रहा है । यहाँ के लोग चंद पैसों के लिए अपनी जमीनो को बेचते नजर आ रहे है । आलम यह है की मालिकाना हक होते हुए भी आज राज्य का हर व्यक्ति खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है । राज्य मे बाहरी व्यक्तियों का बोलबाला इतना ज्यादा हो चुका है की यहाँ के लोग अपने गाँव मे भी खुद को सुरक्षित नहीं समझते है । जिस राज्य मे लोग मानसिक शांति के लिए आते थे आज वहीं राज्य मानसिक प्रताड़ना सहने को मजबूर हो रहा है । भू कानून लागू होने से नया राज्य का व्यक्ति ज्यादा जमीन बेच पाएगा ना ही बाहरी व्यक्ति यहाँ अपना राज जमा पाएगा । जानकारों का दावा है कि राज्य की सीमित कृषि भूमि का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे के विकास में हुआ है और तराई क्षेत्र में उद्योग और शहर का विस्तार हुआ है, जबकि पर्वतीय इलाकों में कृषि भूमि बांध और अन्य विकास परियोजनाओं की भेंट चढ़ गई।
क्या होंगे भू कानून मे फेरबदल ?
22 दिसंबर, 2023 को अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में एक 5 सदस्यीय समिति का गठन किया है। दावा किया जा रहा है कि सरकार भू-कानून में फेदबदल कर सकती है।