उत्तराखंड में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना की मांग लंबे समय से हो रही है, लेकिन राज्य गठन के 25 वर्ष बाद भी यह सपना हकीकत नहीं बन सका है। जबकि 2012 में इसका गजट नोटिफिकेशन जारी हो चुका था, परंतु अब तक जमीन विवाद और कानूनी अड़चनों के चलते निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है।

कहां है रुकावट और किस वजह से है विलंब
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के लिए प्रस्तावित भूमि को लेकर विवाद अदालत में लंबित है। इसी कारण निर्माण प्रक्रिया ठप है। राज्य सरकार इस मामले में न्यायालय के अंतिम आदेश का इंतजार कर रही है। यह कानूनी अड़चन शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र की स्थापना में देरी का मुख्य कारण बनी हुई है।
दूसरे राज्यों में बन चुके हैं मॉडल
उत्तराखंड जैसे ही राज्यों—छत्तीसगढ़ और झारखंड—में पहले ही नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना हो चुकी है और वे विधिक शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इन विश्वविद्यालयों के माध्यम से वहां न केवल स्थानीय छात्रों को बेहतर उच्च शिक्षा मिल रही है, बल्कि राज्य को आर्थिक और बौद्धिक लाभ भी मिल रहा है।
विशेषज्ञों की राय में क्या है संभावनाएं
विधिक शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना से राज्य में कानूनी शोध, न्यायिक प्रशिक्षण और विधिक जागरूकता को नई दिशा मिलेगी। साथ ही राज्य से छात्रों का पलायन रुकेगा और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
आगे की राह और समाधान की संभावना
सरकार की मंशा स्पष्ट है, लेकिन जमीन विवाद का समाधान किए बिना कार्य आगे नहीं बढ़ सकता। यदि अदालत से अनुकूल निर्णय प्राप्त होता है, तो उत्तराखंड जल्द ही विधिक शिक्षा के क्षेत्र में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकता है। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी न केवल शिक्षा का केंद्र होगी, बल्कि राज्य के विकास और पहचान का प्रतीक भी बन सकती है।